" रुनकु पढ़ ले ! "
रुनक के कमरे से बाहर निकलते ही भोलू चिल्ला उठा, और घर के सभी लोग हंस पड़े। रुनक को भी हंसी आ गई। वह दौड़ कर भोलू के पिंजरे के पास जा पहुंची। हँसते हुए बोली, " भोलू मिट्ठू, छुट्टियों में कोई पढता है क्या ? " आज तो मैं नानी के पास जा रही हूँ।वहां बहुत मज़े करुँगी और पढाई से भी छुट्टी ..... "
रुनक को पढाई से ज्यादा शरारतों और खेल में रूचि अधिक है। अक्सर उसकी माँ उसे डांटते हुए कहती रहती है तो भोलू भी सीख गया। जैसे ही वह दिखती है एक बार तो कह ही उठता है कि 'रुनकु पढ़ ले '.....
घर वालों को भी बहुत भाता है मिट्ठू का यूँ चहकना। दो महीने पहले बिल्ली के पंजे से बचा कर उसे पिंजरे में रख लिया गया था। तब से वह रुनक से बहुत हिल-मिल गया। वह भी उससे बतियाती रहती है।
आज जब रुनक नानी के पास जा रही है तो थोड़ी उदास है कि भोलू बिना मन नहीं लगेगा। उसने उसे साथ ले जाने की थोड़ी सी जिद की थी। परन्तु गर्मी की वजह से मना कर दिया गया।
रुनक, उसकी माँ और छोटा भाई ट्रैन में बैठ चुके हैं। पापा ने दोनों बच्चों को सख्त हिदायत दी है कि कोई शरारत ना करें। किसी अनजान का दिया हुआ कुछ ना ले और ना ही खाये। रुनक बोली , " पापा आप चिंता ना करें मैं माँ और भाई का ध्यान रखूंगी आप बस मेरे भोलू का ध्यान रखना। " उसके कहने के अंदाज से माँ-पापा हंस पड़े।
ट्रैन चल पड़ी। शाम को आठ बजे नानी का शहर आना था।
रुनक को पढ़ने का बहुत शौक है वह भी कोई बाल पत्रिका के कर पढ़ने लगी। दोपहर का समय था। खाना खाया हुआ था सभी ऊंघ रहे थे। भाई भी माँ की गोद में सो गया था।
लगभग चार बजे गाड़ी एक स्टेशन पर रुकी। वहां कुछ यात्री उतरे। कुछ चढ़े भी। एक व्यक्ति उनके डिब्बे में उनके सामने वाली खाली सीट पर आ कर बैठ गया। यहाँ -वहां का जायजा लेने लगा। फिर जोर से हुंकार लगाई।
" जय बजरंग बली ! जय-जय श्री राम !! "
जोर की हुंकार से लगभग सभी की नींद खुल गई। सबके चेहरे पर खीझ/परेशानी झलक रही थी । थोड़ी देर बाद उसने अपने बैग से एक डिब्बा निकाला। खोल कर सबकेआगे करने लगा कि बजरंगबली ने उसकी बहुत बड़ी मन्नत पूरी की है तो उसने यह प्रसाद चढ़ाया है।सभी हिचक रहे थे। आज -कल प्रसाद में नशीली चीज मिला कर लूट लेने वारदातें बहुत होती है तो सभी सावधान भी थे। वह आदमी कुछ मायूस सा हो गया।
उसने कहा ,यह सच है कि आज कल जमाना खराब है। किसी पर विश्वास नहीं किया जा सकता। लेकिन मैं ऐसा नहीं हूँ। सच्चा भक्त हूँ बाबा का। प्रसाद तो जितना बांटा जाये उतना ही अच्छा होता है इसलिए मैं आप सभी को बाँट रहा हूँ। अब मैं आप सब के सामने प्रसाद खा कर दिखाता हूँ।"
उसने दो पेड़े उठा कर खा लिए। उसके खाने पर लोगों को भी विश्वास हो गया और सबने प्रसाद ले लिया। रुनक बहुत ध्यान से देख रही थी। प्रसाद वाले डिब्बे को दो भागों में बांटा गया था। दोनों हिस्सों में पेड़े रखे हुए थे। लेकिन एक तरफ तो सादे सफ़ेद रंग के पेड़े रखे थे और दूसरे हिस्से के पेड़ों पर इलाईची के दाने लगे हुए थे। उस व्यक्ति ने खुद तो सादे वाले ही खाये थे और बाकी यात्रियों को इलाईची वाले पेड़े खुद अपने हाथों से ही दिए थे। वह सोच में पड़ गई। उसकी माँ ने तो तीनो का प्रसाद ले कर एक कागज में लपेट कर पर्स में रख लिया। और यात्रियों ने भी लगभग ऐसा ही किया।क्यूंकि विश्वास अब भी नहीं था और बात प्रसाद की थी तो इंकार भी नहीं कर सके। कुछ ने खा लिया।
रुनक ने अपनी माँ को कान में बताया ," माँ ! बाबा जी गड़बड़ है !"
" गड़बड़ है ! क्या ? "
" बाबा जी के प्रसाद के डिब्बे में दो तरह के पेड़े हैं। उन्होंने खुद तो सादे वाले खाये हैं और हमें इलाईची लगे हुए पेड़े दिए हैं। "
" अोह , ऐसा है क्या ? अब क्या करें ......."
कहते हुए माँ तो चिंता में पड़ गई। फिर कुछ सोच कर उस व्यक्ति से बोली , भाई जी, थोड़ा प्रसाद और दीजिये। बजरंग बली का प्रसाद है , मेरे मायके में भी सबको दूंगी। "
" बिटिया ये तो यहीं खा लो, खोये का बना है खराब हो जायेगा । "
" आप चिंता मत कीजिये, शाम तक खराब नहीं होगा।"
" अच्छा बहन ये लो तुम और प्रसाद लो। " डिब्बा खोल कर व्यक्ति ने इलाईची लगे पेड़े देने लगा।
" जरा रुकिए भाई जी ! यहाँ दो तरह के पेड़े रखे हैं। "
" हां तो क्या हुआ !हलवाई ने ऐसे ही बनाए होंगे। "
" फिर आपने खुद सफ़ेद वाले और सबको इलाईची लगे पेड़े क्यों दिए ?"
" अरे बहन शक की भी हद होती है ! " वह नाराज सा होने लगा। अब तो सभी यात्रियों ने अपने पेड़े सम्भाले। जिन्होंने खा लिए थे वो उनींदे से हो रहे थे। उनको भी रुनक की माँ की बात सही लगी। उनमे से एक यात्री बोला ," भाई नाराज क्यों हो रहा है। एक इलाईची वाला पेड़ा तूँ भी खा ले। सबको विश्वास हो जायेगा कि तू गलत नहीं है। "
वह व्यक्ति बगलें झाँकने लगा और उठ कर जाने के लिए यहाँ -वहां ताकने लगा।अब तक तो सब समझ गए कि ये तो गड़बड़ बाबाजी ही हैं। उसे वहीं घेर के बैठ गए।
" बहनजी आपकी सूझबूझ ने हमें ऐसे शातिर बदमाश की जालसाजी से बचा लिया। "
" यह मेरी नहीं मेरी बिटिया रुनकु की सूझबूझ है इसी ने मुझे बताया। " रुनक की बहुत तारीफ हो रही थी कि आजकल के बच्चे बहुत समझदार होते हैं। इनकी बहुत पैनी नज़र होती है। माँ को बहुत गर्व महसूस हो रहा था। अगले स्टेशन पर उस तथाकथित बाबा जी को पकड़वा दिया गया ।
उपासना सियाग
रुनक के कमरे से बाहर निकलते ही भोलू चिल्ला उठा, और घर के सभी लोग हंस पड़े। रुनक को भी हंसी आ गई। वह दौड़ कर भोलू के पिंजरे के पास जा पहुंची। हँसते हुए बोली, " भोलू मिट्ठू, छुट्टियों में कोई पढता है क्या ? " आज तो मैं नानी के पास जा रही हूँ।वहां बहुत मज़े करुँगी और पढाई से भी छुट्टी ..... "
रुनक को पढाई से ज्यादा शरारतों और खेल में रूचि अधिक है। अक्सर उसकी माँ उसे डांटते हुए कहती रहती है तो भोलू भी सीख गया। जैसे ही वह दिखती है एक बार तो कह ही उठता है कि 'रुनकु पढ़ ले '.....
घर वालों को भी बहुत भाता है मिट्ठू का यूँ चहकना। दो महीने पहले बिल्ली के पंजे से बचा कर उसे पिंजरे में रख लिया गया था। तब से वह रुनक से बहुत हिल-मिल गया। वह भी उससे बतियाती रहती है।
आज जब रुनक नानी के पास जा रही है तो थोड़ी उदास है कि भोलू बिना मन नहीं लगेगा। उसने उसे साथ ले जाने की थोड़ी सी जिद की थी। परन्तु गर्मी की वजह से मना कर दिया गया।
रुनक, उसकी माँ और छोटा भाई ट्रैन में बैठ चुके हैं। पापा ने दोनों बच्चों को सख्त हिदायत दी है कि कोई शरारत ना करें। किसी अनजान का दिया हुआ कुछ ना ले और ना ही खाये। रुनक बोली , " पापा आप चिंता ना करें मैं माँ और भाई का ध्यान रखूंगी आप बस मेरे भोलू का ध्यान रखना। " उसके कहने के अंदाज से माँ-पापा हंस पड़े।
ट्रैन चल पड़ी। शाम को आठ बजे नानी का शहर आना था।
रुनक को पढ़ने का बहुत शौक है वह भी कोई बाल पत्रिका के कर पढ़ने लगी। दोपहर का समय था। खाना खाया हुआ था सभी ऊंघ रहे थे। भाई भी माँ की गोद में सो गया था।
लगभग चार बजे गाड़ी एक स्टेशन पर रुकी। वहां कुछ यात्री उतरे। कुछ चढ़े भी। एक व्यक्ति उनके डिब्बे में उनके सामने वाली खाली सीट पर आ कर बैठ गया। यहाँ -वहां का जायजा लेने लगा। फिर जोर से हुंकार लगाई।
" जय बजरंग बली ! जय-जय श्री राम !! "
जोर की हुंकार से लगभग सभी की नींद खुल गई। सबके चेहरे पर खीझ/परेशानी झलक रही थी । थोड़ी देर बाद उसने अपने बैग से एक डिब्बा निकाला। खोल कर सबकेआगे करने लगा कि बजरंगबली ने उसकी बहुत बड़ी मन्नत पूरी की है तो उसने यह प्रसाद चढ़ाया है।सभी हिचक रहे थे। आज -कल प्रसाद में नशीली चीज मिला कर लूट लेने वारदातें बहुत होती है तो सभी सावधान भी थे। वह आदमी कुछ मायूस सा हो गया।
उसने कहा ,यह सच है कि आज कल जमाना खराब है। किसी पर विश्वास नहीं किया जा सकता। लेकिन मैं ऐसा नहीं हूँ। सच्चा भक्त हूँ बाबा का। प्रसाद तो जितना बांटा जाये उतना ही अच्छा होता है इसलिए मैं आप सभी को बाँट रहा हूँ। अब मैं आप सब के सामने प्रसाद खा कर दिखाता हूँ।"
उसने दो पेड़े उठा कर खा लिए। उसके खाने पर लोगों को भी विश्वास हो गया और सबने प्रसाद ले लिया। रुनक बहुत ध्यान से देख रही थी। प्रसाद वाले डिब्बे को दो भागों में बांटा गया था। दोनों हिस्सों में पेड़े रखे हुए थे। लेकिन एक तरफ तो सादे सफ़ेद रंग के पेड़े रखे थे और दूसरे हिस्से के पेड़ों पर इलाईची के दाने लगे हुए थे। उस व्यक्ति ने खुद तो सादे वाले ही खाये थे और बाकी यात्रियों को इलाईची वाले पेड़े खुद अपने हाथों से ही दिए थे। वह सोच में पड़ गई। उसकी माँ ने तो तीनो का प्रसाद ले कर एक कागज में लपेट कर पर्स में रख लिया। और यात्रियों ने भी लगभग ऐसा ही किया।क्यूंकि विश्वास अब भी नहीं था और बात प्रसाद की थी तो इंकार भी नहीं कर सके। कुछ ने खा लिया।
रुनक ने अपनी माँ को कान में बताया ," माँ ! बाबा जी गड़बड़ है !"
" गड़बड़ है ! क्या ? "
" बाबा जी के प्रसाद के डिब्बे में दो तरह के पेड़े हैं। उन्होंने खुद तो सादे वाले खाये हैं और हमें इलाईची लगे हुए पेड़े दिए हैं। "
" अोह , ऐसा है क्या ? अब क्या करें ......."
कहते हुए माँ तो चिंता में पड़ गई। फिर कुछ सोच कर उस व्यक्ति से बोली , भाई जी, थोड़ा प्रसाद और दीजिये। बजरंग बली का प्रसाद है , मेरे मायके में भी सबको दूंगी। "
" बिटिया ये तो यहीं खा लो, खोये का बना है खराब हो जायेगा । "
" आप चिंता मत कीजिये, शाम तक खराब नहीं होगा।"
" अच्छा बहन ये लो तुम और प्रसाद लो। " डिब्बा खोल कर व्यक्ति ने इलाईची लगे पेड़े देने लगा।
" जरा रुकिए भाई जी ! यहाँ दो तरह के पेड़े रखे हैं। "
" हां तो क्या हुआ !हलवाई ने ऐसे ही बनाए होंगे। "
" फिर आपने खुद सफ़ेद वाले और सबको इलाईची लगे पेड़े क्यों दिए ?"
" अरे बहन शक की भी हद होती है ! " वह नाराज सा होने लगा। अब तो सभी यात्रियों ने अपने पेड़े सम्भाले। जिन्होंने खा लिए थे वो उनींदे से हो रहे थे। उनको भी रुनक की माँ की बात सही लगी। उनमे से एक यात्री बोला ," भाई नाराज क्यों हो रहा है। एक इलाईची वाला पेड़ा तूँ भी खा ले। सबको विश्वास हो जायेगा कि तू गलत नहीं है। "
वह व्यक्ति बगलें झाँकने लगा और उठ कर जाने के लिए यहाँ -वहां ताकने लगा।अब तक तो सब समझ गए कि ये तो गड़बड़ बाबाजी ही हैं। उसे वहीं घेर के बैठ गए।
" बहनजी आपकी सूझबूझ ने हमें ऐसे शातिर बदमाश की जालसाजी से बचा लिया। "
" यह मेरी नहीं मेरी बिटिया रुनकु की सूझबूझ है इसी ने मुझे बताया। " रुनक की बहुत तारीफ हो रही थी कि आजकल के बच्चे बहुत समझदार होते हैं। इनकी बहुत पैनी नज़र होती है। माँ को बहुत गर्व महसूस हो रहा था। अगले स्टेशन पर उस तथाकथित बाबा जी को पकड़वा दिया गया ।
उपासना सियाग
यह प्रेरक कहानी मैं अपने बच्चों को भी सुनाऊँगी धन्यवाद उपासना जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कहानी |
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया कहानी।
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