राधिका उस समय सन्न रह गयी ,जब उसके बेटे के हॉस्टल से फोन आया कि उसके बेटे के पास से मोबाइल पकड़ा गया है तो उसने लाख सफाई दी कि उन्होंने बेटे को कोई मोबाइल नहीं दिया बल्कि पैसे भी बहुत लिमिट से देते हैं।स्कूल वालों पर कोई असर नहीं हुआ। कुछ दिन बाद दस हज़ार रुपयों का जुर्माना रूपी पात्र घर पहुँच गया।
बाद में बेटे से बात होने पर उसने बताया वह फोन उसके दोस्त का था और वह दोस्त का नाम कैसे लेता ...! फिर राधिका के यह पूछने पर कि जो दस हज़ार का जुर्माने का पत्र आया है वो कौन देगा ...? तो बेटे ने लापरवाही से जवाब दिया कि "पापा अपने आप जुर्माना माफ़ करवा देंगे, एक बार पहले भी तो जुर्माने का पत्र आया था तब भी उन्होंने यही कहा था ना, मैंने कोई जुर्माना नहीं भरना ...!"यह सुन कर तो राधिका का मन और भी बैठ गया। सोच में पड़ गयी कि वे बच्चों में क्या संस्कार भर रहे है गलती कर रहे हैं और कोई शर्मिन्दगी भी नहीं।
अब यह तो एक छोटी सी घटना है पर यहाँ क्या सिर्फ बच्चे का ही दोष है ..!जब उसके पिता ही उसको डांटने के बजाय उसके जुर्माने को ना भरने कि बात करते हो तो वह क्या सीखेगा, फिर गलत राह ही पकड़ेगा बच्चा ...!
बाद में बेटे से बात होने पर उसने बताया वह फोन उसके दोस्त का था और वह दोस्त का नाम कैसे लेता ...! फिर राधिका के यह पूछने पर कि जो दस हज़ार का जुर्माने का पत्र आया है वो कौन देगा ...? तो बेटे ने लापरवाही से जवाब दिया कि "पापा अपने आप जुर्माना माफ़ करवा देंगे, एक बार पहले भी तो जुर्माने का पत्र आया था तब भी उन्होंने यही कहा था ना, मैंने कोई जुर्माना नहीं भरना ...!"यह सुन कर तो राधिका का मन और भी बैठ गया। सोच में पड़ गयी कि वे बच्चों में क्या संस्कार भर रहे है गलती कर रहे हैं और कोई शर्मिन्दगी भी नहीं।
अब यह तो एक छोटी सी घटना है पर यहाँ क्या सिर्फ बच्चे का ही दोष है ..!जब उसके पिता ही उसको डांटने के बजाय उसके जुर्माने को ना भरने कि बात करते हो तो वह क्या सीखेगा, फिर गलत राह ही पकड़ेगा बच्चा ...!
हम मानते है ;बच्चे देश का भविष्य होते हैं तो फिर हम कैसे भविष्य की रचना कर रहें है ?बच्चे किस तरह से उदासीन होते जा रहे हैं अपने फ़र्ज़ के प्रति। जैसे उन्हें कोई परवाह ही नहीं है किसी भी बात की। लेकिन यह दोष तो अकेले बच्चों का तो नहीं है। इसके दोषी तो स्वयं अभिभावक , स्कूल और आस -पास का परिवेश ही है।
अभिभावक यह कह कर पल्ला झाड़ने की कोशिश करते हैं कि आज-कल का सिस्टम ही ऐसा हो गया है। बच्चे किसी की सुनते ही नहीं।ये सिस्टम बनाया किसने है ? कितने ही अभिभावक ऐसे होते हैं जो बच्चों के सामने ही कानून तोड़ते है और तोड़ने की बात करते हैं फिर बच्चों से क्या उम्मीद करेंगे ...!
अभिभावक यह कह कर पल्ला झाड़ने की कोशिश करते हैं कि आज-कल का सिस्टम ही ऐसा हो गया है। बच्चे किसी की सुनते ही नहीं।ये सिस्टम बनाया किसने है ? कितने ही अभिभावक ऐसे होते हैं जो बच्चों के सामने ही कानून तोड़ते है और तोड़ने की बात करते हैं फिर बच्चों से क्या उम्मीद करेंगे ...!
बच्चों के सामने ही बिना सोचे कि बच्चे के मन पर क्या असर होगा , हम कई बार अपने देश और देश की सरकार को कोसने लगते हैं। यह कहाँ तक उचित है ? ऐसे में क्या बच्चे के मन में अपने देश और लोकतंत्र के प्रति उदासीनता नहीं होगी। बच्चे तो कच्ची मिट्टी की तरह होते है जैसा वातावरण मिलता है वैसे ही तो हो जाते हैं।
आज-कल हर तरफ एक ही चर्चा है आज -कल के बच्चे बिगड़ रहे है , अश्लीलता की तरफ जा रहे हैं। मेरे विचार में यह कहने से पहले हम अपने ही गिरेबान में झांके तो अच्छा रहेगा। कोई भी पारिवारिक समारोह क्यूँ ना हो गीत-संगीत का कार्यक्रम तो होता ही है और किस तरह के अश्लील और अमर्यादित गानों पर भोंडा नाच होता है। कई जगह पीने -पिलाने का दौर भी चलता है तो फिर बच्चों के बिगड़ने का दोष किसलिए ...!
अक्सर ऐसा भी होता है अभिभावक बच्चों के सामने अपने देश को कमतर आंक कर विदेश या विदेशी वस्तुओ को महत्व देते हैं। ऐसा करके अभिभावक बच्चो को अपने देश-प्रेम से दूर ही कर रहे होतें है। जबकि बच्चों को यह समझाना चाहिए कि कोई भी विकसित देश क्यूँ आगे है ,क्यूँ वह इतनी तरक्की कर रहा है। क्यूँ कि वहां के हर नागरिक को गर्व होता है "वो एक महान देश का नागरिक है। उनका हर नागरिक दुनिया का सर्वश्रेष्ठ नागरिक है...!"
लेकिन हम बच्चों को समझाने की बजाय , 'हमारा इतिहास क्या था या हमारे पूर्वज क्या थे ,आज कल के बच्चे तो कुछ आगे बढ़ने कि बात ही नहीं सोचते ....."
ऐसी नकारात्मक बातें बच्चों के सामने की ही क्यूँ जाये जिससे बच्चे हतोत्साह हों .ऐसे में बच्चे के मन पर क्या असर होता है कौन समझना चाहता है ....
घर के बाद स्कूल का वातावरण बच्चे को बहुत प्रभावित करता है और उसके जीवन को एक नयी दिशा भी देता है। लेकिन यहाँ भी शिक्षा सिर्फ व्यवसाय बन चुकी है बच्चे के मन -मस्तिष्क पर क्या असर होता है इसका उनको कोई सरोकार नहीं होता। यहाँ भी बस गला काट प्रतियोगिता पर ही जोर होता है। कई बार तो शिक्षक अपने निजी तनावों का बोझ भी बच्चों पर उतार देते है। जो बच्चे पढ़ाई में अच्छे होते है उनको ही आगे आने को कहा जाता है कमजोर बच्चों को कई बार बहुत बार जलील किया जाता है जिससे वह हीन -भाव से ग्रसित को कर अपना नुक्सान कर बैठते है।
लेकिन हम बच्चों को समझाने की बजाय , 'हमारा इतिहास क्या था या हमारे पूर्वज क्या थे ,आज कल के बच्चे तो कुछ आगे बढ़ने कि बात ही नहीं सोचते ....."
ऐसी नकारात्मक बातें बच्चों के सामने की ही क्यूँ जाये जिससे बच्चे हतोत्साह हों .ऐसे में बच्चे के मन पर क्या असर होता है कौन समझना चाहता है ....
घर के बाद स्कूल का वातावरण बच्चे को बहुत प्रभावित करता है और उसके जीवन को एक नयी दिशा भी देता है। लेकिन यहाँ भी शिक्षा सिर्फ व्यवसाय बन चुकी है बच्चे के मन -मस्तिष्क पर क्या असर होता है इसका उनको कोई सरोकार नहीं होता। यहाँ भी बस गला काट प्रतियोगिता पर ही जोर होता है। कई बार तो शिक्षक अपने निजी तनावों का बोझ भी बच्चों पर उतार देते है। जो बच्चे पढ़ाई में अच्छे होते है उनको ही आगे आने को कहा जाता है कमजोर बच्चों को कई बार बहुत बार जलील किया जाता है जिससे वह हीन -भाव से ग्रसित को कर अपना नुक्सान कर बैठते है।
अगर स्कूलों में कुछ विषयों को कम करके व्यवहारिक ज्ञान और जीवन के असली मूल्यों और बच्चों के कर्तव्यों के बारे में बताया जाये।स्कूली पाठ्यक्रम में एक विषय है "नैतिक -शिक्षा" , इसकी जगह अगर व्यवहारिक शिक्षा का ज्ञान दिया जाय तो बच्चे बेहतर नागरिक बन सकते है।क्यूंकि हम हमारे हक़ के प्रति तो जागरूक हैं पर हमारे फ़र्ज़ क्या है यह भूलने लगे हैं यह भी स्कूलों में सिखाया जाना बहुत आवश्यक है। साथ ही में उनको ट्रेफिक रूल्स के बारे में समझाया जाये क्यूँ कि अक्सर हम देखतें है कि लोग कार -स्कूटर आदि तो चला लेतें हैं पर कैसे चलाना चाहिए उनको नहीं पता होता है।
इस बात में भी संदेह नहीं है कि कई बार बच्चों के संस्कार अच्छे होतें है , क्यूंकि कोई भी माँ-बाप बच्चों को गलत संस्कार देने की कोशिश नहीं करता , वे बच्चों को सभी सुविधा दे देतें है पर अपना समय नहीं दे पाते और बच्चे गलत संगति मैं पड़जाते हैं .वे बच्चो की तरफ ध्यान ही नहीं दे पाते बच्चे कहाँ जाते है ,कौन उनके दोस्त हैं क्या उनकी संगति है . बुरी संगति भी बच्चों को बिगड़ने का कारण बनता है। आज कल हर बच्चे के पास मोबाइल और बाईक तो उनके स्टेट्स सिम्बल ही बन गया है .पर ये स्टेट्स -सिम्बल , बच्चो की नासमझी और अभिभावकों कि लापरवाही से कई बार बहुत महंगा पड़ता है ....!.
आज की आधुनिक सुविधाओं की चकाचौंध भी बच्चों को भटकाने की जिम्मेवार है और कम समय में ज्यादा पाने की होड़ भी...बढ़ते नशों की लत इसी का परिणाम है।
तो क्यूँ ना हम हमारे देश के भविष्य को अपने हाथो से सवारें। और उनको समझाए हमारा देश ,जिसे सोने की चिड़िया कहा जाता था वो अब भी कहलाया जा सकता है।और समझाए कि हमारा देश ही दुनिया का सर्वश्रेष्ठ देश है और हम सब मिल कर इसे आगे ले जा सकते है।