हमें अपने बच्चों को अपना हक़ छोड़ना सिखाना चाहिए। यहाँ मेरा मतलब बच्चों को प्रतियोगिता में पीछे हटाने से नहीं है बल्कि गला काट प्रतियोगिता से पीछे हटने से है। बच्चे को समझाया जाये कि मेहनत करके आगे बढे ना कि धोखे बाजी से। आखिर किस्मत भी कोई चीज़ होती है। किसी को छल कर आगे बढ़ा जाये इससे तो बेहतर है कि वह एक मौके का इंतजार करे। अगर बच्चे की किस्मत में 1000 रूपये हैं तो उन्हें 900 कोई नहीं कर सकता और ना ही 1100 कर सकता है। फिर क्यूँ किसी की बद दुआ मिले बच्चे को।
इतिहास गवाह है कि कोई किसी से छल करने वाला आगे नहीं बढ़ पाया। हम सबसे अच्छा उदाहरण महाभारत से सीख सकते है। सत्यवती को देवव्रत ( भीष्म ) ने अपना राज्य और हक़ दोनों प्रदान किये। लेकिन क्या सत्यवती की संताने राज्य सुख ले पाई। सत्यवती के पुत्रों से लेकर उसके पोत्रों और उनकी संतानों तक कोई भी राज्य सुख , सुख और शांति से जीवन नहीं बिता पाई। वहीं हम देखते हैं देवव्रत से बने भीष्म ही राज सँभालते रहे। चाहे वह राज गद्दी पर ना बैठे हों।
सबसे बड़ी बात यह भी कि किसी का हक़ छीन कर कोई मानसिक रूप से शांति भी नहीं प्राप्त कर सकता।
इतिहास गवाह है कि कोई किसी से छल करने वाला आगे नहीं बढ़ पाया। हम सबसे अच्छा उदाहरण महाभारत से सीख सकते है। सत्यवती को देवव्रत ( भीष्म ) ने अपना राज्य और हक़ दोनों प्रदान किये। लेकिन क्या सत्यवती की संताने राज्य सुख ले पाई। सत्यवती के पुत्रों से लेकर उसके पोत्रों और उनकी संतानों तक कोई भी राज्य सुख , सुख और शांति से जीवन नहीं बिता पाई। वहीं हम देखते हैं देवव्रत से बने भीष्म ही राज सँभालते रहे। चाहे वह राज गद्दी पर ना बैठे हों।
सबसे बड़ी बात यह भी कि किसी का हक़ छीन कर कोई मानसिक रूप से शांति भी नहीं प्राप्त कर सकता।