मंगलवार, 1 अप्रैल 2014

बिल्ली मौसी को अप्रैल -फूल बनाया।



एक थी
छोटी सी चिड़िया
उड़ती रहती
गाँव और शहर की गालियाँ।

एक दिन
देखे उसने
बिखरे दाने बहुत से

दाने चुगने की धुन में
ना देखा उसने
गिरे हैं वो कीचड़ में

खाने  के लालच में
पैर भी धँसवाये
पर भी लिए भिगो

नन्ही सी चिड़िया
घबराई अब तो
 जब देखा सामने
आ रही है बिल्ली मौसी

बिल्ली मौसी भी हर्षाई
मुख पर जीभ लपलपाई
सोचा ,
" अहा ! आज तो दावत
बिन मेहनत  ही पाई !"

चिड़िया थी तो नन्ही
समझदार भी थी बहुत

बोली मौसी
मुझे जरा बाहर निकालो
नहला दो जरा
कीचड़ तुम्हारे मुहं में तो
ना जायेगा

बिल्ली मौसी
अभी तो गीली हूँ मैं !
पानी से भरी
तुमको ना भा सकूंगी
जरा सूखने तो दो !

मूर्ख बिल्ली
बैठी इस आस में
चिड़िया सूखेगी
तब खा जाऊँगी उसे

सूख गए पर चिड़िया के  ...

फड़फड़ाये उसने अपने पर
जा बैठी ऊँची डाली पर
चहकने लगी हो जैसे
बिल्ली मौसी को अप्रैल -फूल बनाया।






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