सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

अनमोल उपहार ( बाल कथा )

      नन्ही सी पीहू चिड़ियों का चहचहाना खिड़की में से देख कर ही खुश हो रही थी । जब से वह अपने चाचा के पास इस बड़े शहर में पढ़ने -रहने आयी है तब से वह इन चिड़ियों को खिड़की में से ही देखा करती है। शहरों में ना पेड़ दिखाई देते है ना ही पंछी। उसे अपने गाँव के हरे -भरे खेत याद  आते और आँगन में लगा नीम का पेड़ भी।
     उसे  हरियाली से , पेड़  -पौधों से बहुत लगाव था। उसने आँगन में कई सारे रंग -बिरंगे फूलों के पौधे लगा रखे थे। जब  वह देखती किसी पौधे में कली खिली है या फूल खिलने वाला है। किलक पड़ती ! फूल , पौधे पर ही नहीं बल्कि उसके भोले से प्यारे से मुख पर भी खिल पड़ते।
     पीहू के पिता गांव में रहते थे। उसके एक भाई और एक बहन गाँव में ही थे। उसके चाचा शहर में नौकरी करते थे। चाचा के कोई संतान नहीं थी।  इस बार गाँव गए तो वे पीहू को साथ ले आये कि उनका अकेला पन भी दूर हो जायेगा और पीहू पढ़ भी लेगी। पीहू के पिता को क्या ऐतराज़ हो सकता था भला। वह सहर्ष मान गए। पीहू गाँव नहीं छोड़ना चाहती थी। उसे अपने फूलों से लगाव था। माँ-बाबा के समझाने पर वह मान तो गई लेकिन मन अपना वहीँ छोड़ आई।


       चाचा का घर तीसरी मंजिल पर था। बाहर निकलो तो चारों और पत्थर के मकान ही नज़र आते। उसका मन कुम्हलाए हुए पौधे कि तरह होने लगा था।  चाचा -चाची बहुत प्यार करते थे। बहुत सारे  खिलौने भी लाकर दिए। वह  खेलती तो थी लेकिन मन बहुत उदास रहता। रात को जब सोती तो अपने पौधों को बहुत याद करती।
 " पीहू ! आओ , स्कूल को देर हो रही है। " चाची ने उसे आवाज़ दी तो वह उदास सी चल पड़ी स्कूल के लिए तैयार होने के लिए।
      चाची ने पीहू को टिफिन पकड़ाते बहुत सारा लाड़ किया। वह चाचा के साथ स्कूल चली गयी।
  दोपहर में जब घर लौटी तो देखा तो सामने उसके बाबा थे।  वह खुश हो कर उनसे लिपट गई। बाबा ने गोद में बैठा लिया। बहुत सारा सामान माँ ने उसके लिए भेजा था। जब उसने अपने पौधों के बारे पूछा तो बाबा हंस पड़े और उसे गोद में उठाये ही बालकनी की  तरफ ले चले। वे उसके लिए एक नन्हा सा पौधा लाये थे। उससे बोले कि इसे वह एक गमले में लगा कर जायेंगे।  वह  ही इसकी देख भाल करेगी। पीहू के चाचा ने एक गमले में इसे लगा दिया।
      पीहू जल्दी से पानी ले आई और गमले में डाल  दिया। अब उसे इंतज़ार था कि कब इसमें फूल खिले लेकिन उसके मुख पर तो फूल खिलने  लग गए थे खुशियों के।

( चित्र गूगल से साभार )

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