मंगलवार, 1 अप्रैल 2014

पुलकित की शरारत ( बाल -कथा )



" टन -टन !!" घंटी बजी।
यह स्कूल की आधी -छुट्टी की घंटी बजी है।
सभी बच्चे अपने -अपने टिफिन लिए कक्षा से बाहर  हो लिए।  केशव , राघव , विपुल , प्रतीक और पुलकित ये पांच बच्चे जो की छठी कक्षा के छात्र हैं  और आपस में मित्र भी हैं । पुलकित इनमे से सबसे ज्यादा शरारती था। उसे कोई ना कोई शरारत सूझती ही रहती है। नित नए तरीके उसकी खुराफाती खोपड़ी में आते ही रहते थे।
 " आज  अप्रैल -फूल पर किसको मूर्ख बनाया जाये ?" पुलकित अपनी शरारती आँखे चमकते हुए बोला।
" इस बार सोच समझ कर ही कुछ सोचना ! पिछली बार की तरह स्कूल से निकलने की नौबत ना आ जाये। "केशव बोला।
" हाँ सच ! पिछली बार घर में भी तो कितनी डाँट पड़ी थी !" प्रतीक जो स्वभाव में  सबसे सीधा बच्चा था , बोला।
राघव कुछ बोलता इससे पहले पुलकित बोल पड़ा कि उसने तो सोच लिया कि इस बार भी मूर्ख  तो कोई न कोई बन के ही रहेगा।
" क्यूँ ना हम अपने इतिहास के अब्दुल गफ्फार सर को ही मूर्ख बना दें !" पुलकित ने एक आइडिया दिया।
" अरे नहीं भई !! गफ्फार सर तो उल्टा लटका देंगे !" इस बात पर बाकी बच्चों ने  असहमति प्रकट की।
" लेकिन मैंने तो सोच लिया !" पुलकित बोला।
" तुम सब कक्षा में जाओ और मेरा इंतज़ार करो। आधी -छुट्टी के बाद का पीरियड गफ्फार सर का ही तो होता है। " पुलकित यह कह कर स्कूल के ग्राउण्ड में आ गया। बाकी बच्चे कक्षा में चले गये।
सर भी कक्षा में आ गये कि पुलकित भागा  हुआ , हाँफता हुआ दरवाज़े पर खड़ा था। ( वह  ग्राउंड में तीन-चार चक्कर दौड़ लगा कर आया था इसलिए हांफ रहा था। )
" सर ! सर !! "
सर भी घबरा गये कि पुलकित को क्या हुआ।
" सर !!! अभी मैं आपके घर के पास से निकला तो देखा कि आपकी पत्नी की  तबियत ख़राब है उनको हॉस्पिटल ले कर जा रहे हैं !"
सर तो सचमुच घबरा गये। बिन कहे ही घर की और चल पड़े।
     सभी बच्चे खिलखिला कर हंस पड़े कि आज तो सर से छुटकारा मिला और उनको बुद्धू बना दिया।
अगले दिन पुलकित सर से डर  के कारण स्कूल नहीं गया। पेट दर्द का बहाना कर के सोता रहा। उस दिन शनिवार था। इसलिए पुलकित ने सोचा कि सोमवार तक तो सर भूल जायेंगे और माफ़ कर देंगे।
      रविवार की सुबह अब्दुल गफ्फार सर की आवाज़ सुन कर पुलकित डर गया। सर उसके पापा से बातें कर रहे थे। उसने ध्यान से सुनने की  कोशिश तो की लेकिन कुछ भी समझ नहीं आया।
" पुलकित ! तुम्हारे सर आये हैं ! तुम्हें बुला रहे हैं। " माँ ने आकर कहा तो वह चौंक उठा।
" मुझे क्यूँ बुला रहे हैं ? " वह सहमते हुए बोला।
वह डरते सहमते से ड्राइंग रूम में गया।  सर ने उसे अपने पास बुलाया और पास बिठाया।
   बोले , " माना कि तुमने मुझे मूर्ख बनाया था। लेकिन मेरी पत्नी बीमार ही रहती है। उसे हृदय रोग है। उस दिन उसकी सचमुच ही तबियत खराब थी अगर मैं समय से घर नहीं जाता और हॉस्पिटल नहीं लेकर जाता तो जाने क्या होता। तुमने मज़ाक में ही सही लेकिन मेरी बहुत मदद की है। इसलिए मैं तुम्हें दुआ देने ही आया हूँ। "
सर  चले गए।  उसके पापा को राहत मिली कि इस बार उसकी शरारत से किसी को नुकसान नहीं पहुंचा। फिर भी उसने झूठ तो बोला ही था। पहले स्कूल और फिर घर में पेट दर्द का बहाना। इसलिए उसको एक सप्ताह तक उसके मन पसंद टीवी के प्रोग्राम देखने की पाबंदी लगा दी गई। पुलकित ने भी मन ही मन शरारत कम कर देने की  कसम खा ली।

उपासना सियाग ( अबोहर )

बिल्ली मौसी को अप्रैल -फूल बनाया।



एक थी
छोटी सी चिड़िया
उड़ती रहती
गाँव और शहर की गालियाँ।

एक दिन
देखे उसने
बिखरे दाने बहुत से

दाने चुगने की धुन में
ना देखा उसने
गिरे हैं वो कीचड़ में

खाने  के लालच में
पैर भी धँसवाये
पर भी लिए भिगो

नन्ही सी चिड़िया
घबराई अब तो
 जब देखा सामने
आ रही है बिल्ली मौसी

बिल्ली मौसी भी हर्षाई
मुख पर जीभ लपलपाई
सोचा ,
" अहा ! आज तो दावत
बिन मेहनत  ही पाई !"

चिड़िया थी तो नन्ही
समझदार भी थी बहुत

बोली मौसी
मुझे जरा बाहर निकालो
नहला दो जरा
कीचड़ तुम्हारे मुहं में तो
ना जायेगा

बिल्ली मौसी
अभी तो गीली हूँ मैं !
पानी से भरी
तुमको ना भा सकूंगी
जरा सूखने तो दो !

मूर्ख बिल्ली
बैठी इस आस में
चिड़िया सूखेगी
तब खा जाऊँगी उसे

सूख गए पर चिड़िया के  ...

फड़फड़ाये उसने अपने पर
जा बैठी ऊँची डाली पर
चहकने लगी हो जैसे
बिल्ली मौसी को अप्रैल -फूल बनाया।