सोमवार, 14 जनवरी 2013

जब मैं बहुत सुखी थी........

बात उन दिनों की है जब मैं बहुत सुखी थी। सुखी तो अब भी हूँ पर तब ज्यादा सुख का अनुभव करती थी जब मेरे बच्चे छोटे थे और मैं उनकी प्यारी और भोली बातों  में जीवन की खुशियाँ महसूस करती थी।
दो बेटे और दोनों ही विपरीत स्वभाव  के ....! बड़ा अंशुमन जहाँ मितभाषी ,भावुक और शांत स्वभाव का है तो छोटा प्रद्युमन बातूनी , व्यवहारिक और बेहद शरारती .....
मुझे दोनों के साथ उनके स्वभाव  के मुताबिक ही व्यवहार  करना होता है। बड़ा बेटा जहाँ बात -बात पर बात को दिल से लगा लेता है और चुप हो जाता है , वहीँ छोटा बात को इग्नोर कर झट से  जवाब  दे देता है।
अंशुमन स्कूल से आता तो हर बात बताता और सबसे पहले अपने टेस्ट के नम्बर बताता। एक दिन आधा नम्बर कम आया तो मेरे मुहं से निकल गया , " अरे , ऐसे कैसे तुम पास होओगे ...! "
अगले दिन स्कूल गया तो बोला , " मम्मा आप चिंता  मत करना , आज मैं पूरे  नम्बर ला कर दिखाऊंगा  , फिर मत कहना की कैसे पास  होऊंगा।"
प्रद्युमन स्कूल से आता तो मेरी कुछ पूछने की हिम्मत ही ना होती ....पहले उसके हाथ-मुहं धुलवाने सीधे बाथरूम में ले कर जाती। वहां थोडा बहुत बात होती और मैं पूछना चाहती की आज टेस्ट में क्या हाल चाल  रहे। फिर तो भोले से प्यारे से मुख से जो बातें फूटती ...कि  बस मेरे पास उसे गले लगाने के अलावा कोई चारा ही नहीं रहता।
लेकिन एक दिन बहुत हैरानी हुयी कि प्रद्युमन बहुत शांत मूड से अपने ऑटो से उतरा और चाल भी अकड़ी हुयी थी ( टेस्ट में नंबर अच्छे आये थे उसके हिसाब से )...बोला, " आज मेरे जीरो नम्बर भी नहीं आये , एक नम्बर भी नहीं आया , तो बताओ कितने नम्बर आये होंगे भला।"
मैंने सोचा चाल में इतनी अकड है तो दस में से पांच तो आये ही होंगे। मैं कुछ बोलती उससे पहले ही बहुत खुश हो कर बोला , " मेरे आज डेढ़ नम्बर आये है ...अब तो आपको चिंता नहीं है , मैं पास हो जाऊंगा ना ...!"
मेरे पास उसके भोले सवाल के जवाब में सिर्फ जोर से हंसी ही थी।
परीक्षाओं से पहले बोलता , मम्मा , हमारी प्रिंसिपल सिस्टर ने कहा है  पास होने के लिए 33 नम्बर जरुरी है तो मैं आपको ला कर दिखा दूंगा।"

" आप टेंशन मत लिया करो ...!" और गले लग जाता।
रात तो जब टीवी देखते तो रिमोट मेरे हाथ में रहता दोनों बेटे मेरी अगल - बगल में बैठते। कोई भी अवांछनीय दृश्य या हिंसक दृश्य होता तो मैं जल्दी से चैनल बदल देती।ऐसे ही एक दिन एक फिल्म चल रही थी टीवी पर। हम तीनो ही बैठे थे और एक बेहद खून-खराबे वाला दृश्य आगया , मैंने झट से चैनल बदल दिया। प्रद्युमन  , जो  बहुत दिलचस्पी से देख रहा था , विचलित सा हुआ तो मैंने  भी बात बदलनी चाही और दोनों को अपनी बाँहों के घेरों में समेटते हुए कहा , " तुम दोनों मेरे बेटे नहीं मेरी आँखें हो ...!"
अंशुमन ने तो भावुक हो कर ख़ुशी से मेरे कन्धों पर सर रख दिया। लेकिन प्रधुमन उछल कर सामने बैठ गया।
मेरी एक आँख में ऊँगली रख कर लगभग दबाते हुए बोल पड़ा , " मम्मा , ये आँख फूटेगी तो कौन मरेगा।"
मैं एक दम से हैरान हो गयी और बहुत जोर से हंस पड़ी।

ना जाने कितनी बातें छोटी-छोटी , प्यारी -प्यारी जो याद करके कभी हंस लिया जाता है तो उदास हो लिया जाता है।लेकिन जो समय बीत गया वह वापस तो नहीं आता बस यादों की संदुकची खोल कर देख लिया जाता और कुछ समय महका लिया जाता है।